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Showing posts from September, 2020

#justicefor_________

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  #JUSTICEFOR______ ये खाली हर रोज अलग नामों से भरा रहा रहता है, कभी कोई तो कभी कोई ... कानून मर रहा है न्याय मर रहा है सरकार सो रही है इंसानियत खत्म हो गयी है,जैसे न जाने कितने हैशटैग चलते है । गुस्सा ट्विटर से फेसबुक तक हर सोशल मीडिया मंच पर फूटता है , नारे लगते है कैंडल मार्च निकलता है। कुछ ग़लतियाँ भी निकलते है , समाज परिवार या फिर उन औरतों की , और न जाने कितना कुछ । अरे हाँ ! कुछ माँ बहन की गालियों के साथ ही उन्हें न्याय दिलाने की बात भी करते हैं । चैनलों पर बहस होता है, जहाँ अपराध के कारण , उसे रोकने के उपाय से ज्यादा आरोप प्रत्यारोप होता है।नारे लगते है गुस्सा फूटता और  बस ये चलता रहता है । कभी कुछ नियम कानून भी बनते है , और फिर कुछ दिन में सब शांत हो जाता है, सड़के और चौराहें सब खाली और शान्त हो जाते हैं, । हाँ ! खबरों में इन घटनाओं से ज्यादा हंगामे की खबरें दिखाई जाती है, लोगों की भीड़ ने क्या किया यह दिखाया जाता है और इन सब मे खो जाता है इन घटनाओं का सच । बदलता तो भी कुछ नही हैं , राजनीतिक पार्टियाँ अपना फायदा नुकसान देखने मे एक दूसरे को गलत ठहरातें है। कानून अपना काम कर रहीं ह

☹️खुद को मर्द कहने वाले ,एक महिला की इज्ज़त से खेल जाते हैं ।☹️

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एक स्त्री की आबरू को, भरे बाजार छलनी कर जाते हैं, खुद को मर्द कहने वाले, एक महिला की इज्ज़त से खेल जाते हैं। खुद की हवस को मिटाने के लिए, दूसरे की बेटी की बलि चढ़ाते हैं, खुद को मर्द कहने वाले, एक महिला की इज्ज़त से खेल जाते हैं। कभी महिला दिवस,तो कभी बेटी दिवस मनाते हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा में कभी कोई कदम नहीं उठाते हैं, खुद को मर्द कहने वाले, एक महिला की इज्ज़त से खेल जाते हैं। एक अकेली औरत पर, वो अपना बल हमेशा दिखाते हैं, बलात्कार कर उसका, उसे मरने को छोड़ जाते हैं, खुद को मर्द कहने वाले, एक महिला की इज्ज़त से खेल जाते हैं। # justiceforall # justiceforallgirls @कृष्णा @krishna 

मां ❤️ मेरी मां आप सबकी मां

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बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ याद आती है चौका-बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे आधी सोई आधी जागी थकी दोपहरी जैसी माँ चिड़ियों के चहकार में गूंजे राधा-मोहन अली-अली मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती घर की कुंडी जैसी माँ बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सब में दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ @कृष्णा @krishna © Krishna

Nothing can be changed.🌹

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बहुत कुछ बदला लेकिन वो दिल नहीं...  पता है तुम्हे, मैं चाहता हूं सब पहले जैसा हो। हाँ, मैं खुश तो नहीं था पर भीतर सब थमा हुआ था, इतनी बेचैनी नहीं थी। जबकि तुम अब भी नहीं हो। लेकिन तुम आयी थी... ये सच करैले से ज्यादा कड़वा है।  जिन्दगी का वो दौर बेशक खूबसूरत था लेकिन गुजर गया सब। बहुत कुछ बदला तब से, मेरी दाढ़ी घनी हो गयी और तो और सब कहते हैं मैं समझदार हो गया हूं। लेकिन कोई नहीं जानता कि वक्त से पहले हो गया हूं। अब पढ़ने की जरूरत नहीं, सपने बदले नहीं, बल्कि खत्म हो गये तुम्हारे जाने के बाद। डायरी के वो हिस्से जिनमें तुम्हारा जिक्र था, उन हिस्सों की सारी स्याही धुल गयी। यकीन मानो मेरा, बहुत कोशिश की थी आंसूओं को रोकने की लेकिन..... वो....  बहुत कुछ बदला लेकिन वो दिल नहीं.... हाँ अब कहोगी कि मुझे ही ज्यादा गुस्सा आता था, जानता हूं, पर तुम तो सब समझती थी न। अकेला इंसान सिर्फ गुस्सा ही तो करता है, कमरे की दीवारों पर, आसमानी रंगो पर... पर तुम्हारे साथ भी मैं अकेले रह गया इतनी शिकायत रहेगी हमेशा। अब तो तुम हो भी नहीं, हाँ कि गलती तुम्हारी नहीं थी पर इक दफे सोचना कि क्या सारा गुनाह मेरा है! ख

एक रोज़ जब तुम ढूंढोगी मुझे ☹️

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एक रोज जब ढूंढोगी तुम मुझे एक रोज़ जब ढूंढोगी तुम मुझे, इन बिखरे बंद दरवाजे में। महसूस करोगी मेरी आहटों को, उन हवाओं के सरसराहट में। ढूढ़ोगी मेरी हँसी को उस उजली-सी धूप में , कभी शायद महसूस भी करोगी मेरी मौजूदगी तुम साथ अपने उन अकेले रास्तों पर । बीते पल के उन हर हसीन लम्हों को जब तुम याद करोगी एक रोज़, औऱ ढूढ़ोगी 'हम' को उस पल में। मैं मिलूँगा वही वैसे ही तुम्हें निहारते हुये एकटक उन सितारों के बीच से, उन सितारों के बीच से....।।।                                               © तुम्हारा कृशु (krishna)

Dekho , Tum Laut Aana ❤️

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 देखो, तुम लौट आना। जब बारिश की आखिरी बूंद, आसमान पोंछ चुकी हो। जब बल खा कर चली पुरवाई, रूठ कर लौट जाए अपने घर। जब मिट्टी में दफ़्न छोटे दाने, अंगड़ाईयाँ लेते हुए अँकुराने लगे।  तुम लौट आना। जब दिन अपना लजाया चेहरा, रात की ज़ुल्फ़ों की आड़ में छिपा ले। जब हज़ारों टिमटिमाते जुगनू, रात की ज़ुल्फ़ों में डेरा बना लें। जब रात, अपने ज़ुल्फ़ों में सजाए हुए, एक सफेद फूल, खूब इठलाती फिरे।  तुम लौट आना। जब एक धीमा मद्धम उदास संगीत , बन्द खिड़कियों से धीमे धीमे रिसने लगे। जब चिराग़, ले अलसाई अंगड़ाई, हौले हौले हर कोने में जाग उठें। जब मेरी देहरी का टिमटिमाता दीया, रोशन करना चाहे तुम्हारे लौटने की राह। तुम लौट आना। जब बादलों से झांकने लगे, तेज़ सुफ़ेद रौशनी की चादर। जब आँखों मे एक एक कर, जम जाएँ आँसुओं की कई परतें। जब तंग आ कर तन्हाईयों से, नमी लिए गूँज जाए एक सदा। तुम लौट आना, देखो, तुम लौट आना। तुम्हारा कृषु ( krishna) @krishna ©™ Krishna

माँ :- एक अद्भुत स्वरूप

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मैं प्रेम में पड़ कर किसी  प्रेमिका का अपनी कविताओं में चित्रण करने से पहले वर्णित  करूँगा अपनी माँ को उन कविताओं  में जिनके प्रेम ने मुझे बनाया हैं  किसी नाज़ुक पौधे से वट वृक्ष  जो कि उठा सके जिम्मेदारियां उसकी  ताकि वह कविता मुझे स्मरण कराती रहे और बचाये रखे मुझे मेरे ही अहं से उसको किसी भी रूप में अपमानित  और भम्रित करने से पहले कि मेरी  उत्पति एवं वजूद भी एक औरत (माँ) से हैं जिसका प्रतिबिंब ही मेरी प्रेमिका है।  ©®™ Krishna

सफ़र हमसफ़र

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 अनकहा-सा रह गया जो वो बात अब किससे कहूँ! कौन है यहाँ मेरा भला  जा गले किसके लगूँ! थोड़ी बहुत नादानियाँ थी क्या पता था... कि रूठ जायेंगे मुझसे मेरे किनारे मैं समंदर गमों का मुझे किनारा ना मिला जो खोया सफ़र में मैंने मुझे दोबारा ना मिला... ❤ Copyright@KRISHNA

Zindgi bhi kaha thamti hai ...

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 जिंदगी भी कहाँ थमती है, किसी एक के चले जाने से, चंद दिन आँसुओ में लिपट, खुद को समझा लेते हैं हम, याद आए तो कभी मुस्कुरा, कभी अश्क छलका देते है हम, बीतें लम्हों का एक संग्राहिक बना लेते है हम, हाँ! खुद को समझा लेते है हम, सबकी बातों को सुन बस  ताज्जुब होता है तब, चले जाने के बाद हर इंसान को अच्छा मान लेते है सब, सहानुभूति के साथ अपनी कहानियाँ बता जाते है जब, न चाहते हुयें भी दर्द बहुत गहरा लगता है तब, हाँ ! पर अब खुद को समझा लेते है हम.... @krishna

"ख़्वाहिशों से भरा इंतजार का ख़त"

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  " ख़्वाहिशों से भरा इंतजार का ख़त " कुछ ख्वाहिशें हैं जो शायद पूरी करना भूल गया था। तुम्हारे साथ कि इतनी आदत कब लग गयी जान ही नहीं पाया, कभी सोचा ही नहीं की अपनी वो ख्वाहिशें पूरी कर लूँ, पता नहीं कब जाना हो जाये तुम्हारा। नहीं आया ख्याल कभी तुम्हारे जाने का,  तुम्हारे साथ रहने के बारे में ही सोचा हमेशा, उसी पल में जिया। काश! एक बार तो सोचा होता कि अगर तुम चली गयी तो?? ख़ैर,  आज 193 दिन 7 घण्टे और शायद 40 मिनट गुजर गये हैं तुम्हारी आवाज बिना सुने" तुम्हारे मोबाइल में इनबॉक्स में पड़ा वो मैसेज बयां करता है, कि कैसे गुजरा है ये वक़्त कभी मै coca cola ya Sprite पी लेता तो तुम्हारे कभी ख़त्म ना होने वाले लेक्चर्स मुस्कुराते हुए सुनते रहता था, मुझे हँसते हुए देख कर तुम्हारा पारा और चढ़ जाता था। फिर पीठ पे एक साथ आठ दस मुक्के बरसाने के बाद तुम कहती थी, कि खाओ कसम अब से नहीं पियोगे, और मैं इस कसम से बचने के लिये तुम्हारे चश्मे की तारीफ करने लगता और तुम भी बताने लगती कल ही तो लायी हैं दीदी। हम दोनों जानते थे कि झूठी कसम मैं कभी खाऊंगा नहीं और इससे सच भी बदलेगा नहीं, तो बात ही बदल द

❤️वो लड़की :- ❤️sksmedics❤️

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वो लड़की चश्मे से झाँकती हुई किसी दूसरी दुनिया की लगती है। वो लड़की जो लिखते हुये पेन को  मुँह में नहीं दबाती है, उसे ऊँगलियों में घुमाती रहती है किसी दूसरी दुनिया की लगती है। वो लड़की जिसे पसन्द है उपन्यास पढ़ना जो ढूंढ़ती रहती है किरदारों में खुद को हर क्षण जिसे चाॅकलेट में सिर्फ पर्क (Perk) पसन्द हैं किसी दूसरी दुनिया की लगती है। वो लड़की जो सम्भाल नहीं पाती अपने खुले बालों को जिसे ठीक से गुस्सा करना भी नहीं आता है जो डाँटती है मुझको रोते हुए किसी दूसरी दुनिया की लगती है।  वो लड़की जो मुझे प्रेम करती है किसी दूसरी दुनिया की लगती है। Copyright @krishna #sksmedics #ss ❤️

❤️ऐ महबूब! जरा तुम जल्दी आना❤️

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  ❤️ऐ महबूब!  जरा तुम जल्दी आना  ❤️ 😥 वादा जो तुम्हारा था अज़ल  तक साथ चलने का जो तुमने कह रखा था हमसे दोबारा फिर से मिलने को तो लो हम हैं उसी जगह जहाँ पर अब तक दोनों मिलते थे दिन, महीने, साल बीत रहे तुम आयी नहीं अब तक क्यों! क्या तुम फिर से भूल गयी हो वादा जो तुम्हारा था हर वादे को निभाने का जो तुमने कह रखा था हमसे हाथ पकड़ कर चलने को ग़र याद है अब तक तुमको तो ऐ! महबूब जरा तुम जल्दी आना हम वक्त की चोट से घायल हैं शायद  अज़ल  तक चल न पाये अपनी  हयात  का सारा हिस्सा हम तुमको दे कर जायेंगे अब  अजल  तो आयेगी एक दिन लेकिन तुमने मिलने का अफ़सोस न हो तुम आयी नहीं अब तक क्यों! क्या तुम फिर से भूल गयी हो वादा जो तुम्हारा था मिल कर गले लगाने का जो तुमने कह रखा था हमसे साथ हमारे जीने को... ग़र याद है तुमको अब तक तो ऐ! महबूब जरा तुम जल्दी आना वक्त जरा-सा कम ही है... ❤ (अज़ल- अनन्त/ हयात- जीवन/ अजल- मृत्यु) रचनाकार :- स्वयं मैं  @krishna @sksmedis Facebook