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मोहब्बत एवं धोखा ..... By Krishna Singh Rajput Ji

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मोहब्बत और धोखा By :- Krishna   हिम्मत नहीं रही अब मुझ में थोड़ी भी तुझसे उलझने की तू कर दे इशारा जरा  मैं भी शांत समुंदर बन जाऊंगा। तू साबित कर दे बेगुनाही अपनी खुद को गुनहगार बना मैं सबकी नजर में क़ातिल बन जाऊंगा। तू मिला ले मुझसे अपनी फरेबी नजरें एक रोज समाने बैठकर तेरी आँखों को पढ़कर मैं लोगों को पढ़ लेने का अपना हुनर भूल जाऊंगा। तू दे दे वजह मुझे बेमिसाल नफरत की चल वादा रहा मेरा  छिड़ी मोहब्बत की बातें कहीं, तो मैं उस महफ़िल की सब से बड़ी दुश्मन बन जाऊंगा। तू नजरअंदाज कर जा मेरे आसूँओं की नमी को देता हूँ तस्सली तुझे मैं आँखों को अपना सूखा रेगिस्तान बना जाऊंगा। तू बदल के देख ले अपना ठिकाना गली की बात छोड़ शहर को बदल मैं तेरे शहर का नाम तक अपने लब से मिटा जाऊंगा। तू बना ले अपनों को ग़ैर जितना ग़ैरों को अपना बना मैं तुझसे बेहतर सभी से रिश्ते निभा जाऊंगा। तू सोया कर हर दिन अजनबियों की बाहों में थाम किसी के हाथों को मैं उसकी कंधे पर सिर टिका ये जिंदगी बिता जाऊंगा। तू मत दिखा अपनी सच्चाई का सबूत खोल के कई परतें अभी तेरे करतूतों की मैं तुझे मुहब्बत के नाम पर धोखा लिख जाऊंगा। @krishna

❤️वो लड़की :- ❤️sksmedics❤️

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वो लड़की चश्मे से झाँकती हुई किसी दूसरी दुनिया की लगती है। वो लड़की जो लिखते हुये पेन को  मुँह में नहीं दबाती है, उसे ऊँगलियों में घुमाती रहती है किसी दूसरी दुनिया की लगती है। वो लड़की जिसे पसन्द है उपन्यास पढ़ना जो ढूंढ़ती रहती है किरदारों में खुद को हर क्षण जिसे चाॅकलेट में सिर्फ पर्क (Perk) पसन्द हैं किसी दूसरी दुनिया की लगती है। वो लड़की जो सम्भाल नहीं पाती अपने खुले बालों को जिसे ठीक से गुस्सा करना भी नहीं आता है जो डाँटती है मुझको रोते हुए किसी दूसरी दुनिया की लगती है।  वो लड़की जो मुझे प्रेम करती है किसी दूसरी दुनिया की लगती है। Copyright @krishna #sksmedics #ss ❤️

तुम्हारे पैरों के निशान

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  पिछले सालों की तरह आने वाले साल भी गुजर जायेंगे। तुम्हारा लौटना नहीं होगा। बुरा होता है, सच को जानते हुये भी झूठ पर यकीन करना। बना लेना अपनी एक ऐसी दुनिया जिसमें से गुजरा हुआ शख्स कभी गुजरा ही न हो। जैसे कि हमारी दुनिया में अब भी तुम हो। आज भी सुबह उठकर चाय बनाते हैं हम... दो कप। बस पता नहीं क्यों तुम्हारी चाय ठंडी हो जाती है, तुम पीती नहीं हो। न जाने क्यों तुमने एक बार काॅल नहीं किया, न तुम्हारा फोन लगा। हाँ; जानते हैं तुम नहीं हो। महज तुम्हारी कुछ तस्वीरें हैं अपने हिस्से में जिन्हे सम्भाल कर रखा है बेहद डर के साथ कि किसी रोज ये तस्वीरें ना रहीं तो! तुम्हे गये जैसे सदी हो गयी है मगर अब तक हमने तुम्हे अपने पास रोके रखा है। शर्ट लेने से पहले तुमसे पूछते हैं अब भी। अब भी सड़क पर चलते वक्त तुम्हे अपने बायें तरफ करते हैं और तुम्हारा हाथ पकड़ लेते हैं। वो हमारे सीने पर सिर रखकर आँखे मूंदे गुनगुनाते रहने की आदत तुम्हारी अब तक नहीं गयी है। पता है... कल जब तुम्हारे लिये तोहफा ले रहा था तो याद आया कि तुम्हे हमारे साथ समंदर किनारे रेत पर दूर तक चलना था तो हम यहाँ आ गये... अभी हम तुम साथ-साथ च

सामाजिक परिघटना का यथार्थ

 Writter :- स्वयं मैं   - ( सामाजिक परिघटना का याथार्थ) मरहम के नीचे घाव है, किसको यहाँ पता। आज तक समझ न पाया, किसको किससे खता।। बराबर चल रहे थे यहाँ , एक दूसरे से बात। किसे,कब कौन छोड़ दे, एक दूसरे का साथ ।।          

Saaho movie

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WATCHING SAAHO     ...... DD PLEX JNP

ख्वाब .. By :- Krishna ( KRISHNAKANT)

 My poetric lines ख्वाब बुनने की उमर में , उलझनो का जाल गहराता गया.. उड़ान की तैयारी पूरी थी , उम्मीद की बेड़ीयों  के ताले  खुद मे समाता गया..  कही सुनी बातों  के दबाव में , अपनी कमिया नजर आने लगी..  उन्ही बातों  को लेकर , खुद को दोषी  ठहराता गया.. बस एक मौके की तलाश थी,  डूबा हुआ और कितना  डूबता..  डर को समेट कर,  अपनी ताकत बनाता गया..  फ़िर ऐसा उड़ा आसमान चीरकर, गिरने की अब जो थी नहीं कोई फ़िकर..  झटक के अपने कैद पंखों को, एक नई दास्तान लहराता गया..  By - कृष्णकान्त सिंह आर्युविज्ञान छात्र   @krishna singh rajput ji