माँ :- एक अद्भुत स्वरूप

मैं प्रेम में पड़ कर किसी 

प्रेमिका का अपनी कविताओं

में चित्रण करने से पहले वर्णित 

करूँगा अपनी माँ को उन कविताओं 

में जिनके प्रेम ने मुझे बनाया हैं 

किसी नाज़ुक पौधे से वट वृक्ष 

जो कि उठा सके जिम्मेदारियां उसकी 

ताकि वह कविता मुझे स्मरण कराती रहे

और बचाये रखे मुझे मेरे ही अहं से

उसको किसी भी रूप में अपमानित 

और भम्रित करने से पहले कि मेरी 

उत्पति एवं वजूद भी एक औरत (माँ) से हैं

जिसका प्रतिबिंब ही मेरी प्रेमिका है। 







©®™ Krishna

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