एक रोज़ जब तुम ढूंढोगी मुझे ☹️
एक रोज जब ढूंढोगी तुम मुझे
एक रोज़ जब ढूंढोगी तुम मुझे,
इन बिखरे बंद दरवाजे में।
महसूस करोगी मेरी आहटों को,
उन हवाओं के सरसराहट में।
ढूढ़ोगी मेरी हँसी को उस
उजली-सी धूप में ,
कभी शायद महसूस भी करोगी
मेरी मौजूदगी तुम साथ अपने
उन अकेले रास्तों पर ।
बीते पल के उन हर हसीन लम्हों को
जब तुम याद करोगी एक रोज़,
औऱ ढूढ़ोगी 'हम' को उस पल में।
मैं मिलूँगा वही वैसे ही तुम्हें निहारते हुये
एकटक उन सितारों के बीच से,
उन सितारों के बीच से....।।।
© तुम्हारा कृशु (krishna)
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