घाट और मैं ❣️
घाट और मैं उन दिनों हम अक्सर ही घाट पर होते थे। पंडित कभी साथ नहीं था मगर श्री अक्सर होता था। कभी-कभी हम अकेले होते थे। हाथ में एक डायरी, जेब में एक पेन और बेतरतीब से ख़याल हमेशा रहते थे, जब भी अकेले हुआ करते थे। ऐसा कई दफे हुआ था कि कुछ लोग रात में काॅल करते थे यह जानने को कि शायद हम घाट पर मिले। हम हमेशा कहते कि हम घर पर हैं। अकेले होना हमने चुना था। किसी अंधेरे हिस्से में जहाँ बस थोड़ी सी रोशनी हो, वहीं बैठ कर घंटो लिखते थे। एक जरूरी बात यह है कि घाट पर बैठकर कोई प्रेम के बारे में नहीं लिखता है। एक कुल्हड़ चाय बगल में होती थी। कुल्हड़ और चाय दोनों हर आधे घंटे पर बदल जाती थीं। एक बच्चा था, जिसका नाम हमें याद है। वह अक्सर रात 11 के बाद काॅल करता और घंटो बातें करता। हम सुनते रहते, डायरी बंद रहती थी। वह उदास होता था, हर रोज और हर रोज हम उसे खींच कर ले आते, जिन्दगी की ओर। क्योंकि हम जिन्दा थे और हमें पता था कि जिन्दा रहना जरूरी नहीं, जिन्दगी का होने जरूरी है। रात और गहरी होती। भीड़ आहिस्ता से छंट जाती, सन्नाटे पसर जाते थे। ऐसे वक्त में हम सीढ़ियों से नीचे गंगा की ओर देखा करते थे। कि