मोहब्बत एवं धोखा ..... By Krishna Singh Rajput Ji

मोहब्बत और धोखा

By :- Krishna




 हिम्मत नहीं रही अब मुझ में थोड़ी भी

तुझसे उलझने की

तू कर दे इशारा जरा 

मैं भी शांत समुंदर बन जाऊंगा।


तू साबित कर दे बेगुनाही अपनी

खुद को गुनहगार बना

मैं सबकी नजर में क़ातिल बन जाऊंगा।


तू मिला ले मुझसे अपनी फरेबी नजरें एक रोज समाने बैठकर

तेरी आँखों को पढ़कर

मैं लोगों को पढ़ लेने का अपना हुनर भूल जाऊंगा।


तू दे दे वजह मुझे बेमिसाल नफरत की

चल वादा रहा मेरा 

छिड़ी मोहब्बत की बातें कहीं, तो

मैं उस महफ़िल की सब से बड़ी दुश्मन बन जाऊंगा।


तू नजरअंदाज कर जा मेरे आसूँओं की नमी को

देता हूँ तस्सली तुझे

मैं आँखों को अपना सूखा रेगिस्तान बना जाऊंगा।


तू बदल के देख ले अपना ठिकाना

गली की बात छोड़

शहर को बदल

मैं तेरे शहर का नाम तक अपने लब से मिटा जाऊंगा।


तू बना ले अपनों को ग़ैर जितना

ग़ैरों को अपना बना

मैं तुझसे बेहतर सभी से रिश्ते निभा जाऊंगा।


तू सोया कर हर दिन अजनबियों की बाहों में

थाम किसी के हाथों को

मैं उसकी कंधे पर सिर टिका ये जिंदगी बिता जाऊंगा।


तू मत दिखा अपनी सच्चाई का सबूत

खोल के कई परतें अभी

तेरे करतूतों की

मैं तुझे मुहब्बत के नाम पर धोखा लिख जाऊंगा।


@krishna

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