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Krishna Singh Rajput Ji

जीवन संगिनी बिल्ली 🐱

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 जीवनसंगिनी जीवन में कुछ ऊंच नीच अगर हो जाये कोई बात जो तुमको बुरी लगे कोई गलती मुझसे हो जाये याद रहे बस वो पल जिसमें वचन दिया हम दोनों नें इस जीवन की कठिनाई में संयम कभी न तोड़ेंगे चाहे कुछ भी हो जाये हम साथ कभी न छोड़ेंगे। हम तुम दूर रहे हैं अक्सर पर दिल में तुम्हीं समायी हो स्वप्न हो तुम जो रात को देखा तुम दिन में मेरी परछाई हो विरल पुष्प तुम दुर्लभ पंछी शील सरित तरुणाई हो इस रिश्ते में तुम भी मैं भी तिन तिन सपने जोड़ेंगे चाहे कुछ भी हो जाये हम साथ कभी न छोड़ेंगे. जब मैं होऊंगा छप्पन का और तुम होगी एक्क्यावन की देख के नाती-पोतों को फिर याद करेंगे यौवन की बात करेंगे बच्चे अपनी रिश्ते अपने पावन की किसी शाम फिर नदी किनारे याद से यादें जोड़ेंगे चाहे कुछ भी हो जाये हम साथ कभी न छोड़ेंगे। Happiest Birthday Billi 🍰🍰😍😍💘💘🐱🐱🎂🎂🎂🍬🍬 तुम्हारा प्रिय बिल्लू 🐱

स्त्री होना क्या होता है ??...❣️🇮🇳

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हम नहीं जानते हैं स्त्री होना क्या होता है..!!:-   हम नहीं जानते हैं स्त्री होना क्या होता है! शायद जानना जरूरी भी नहीं है। पुरूष हों या स्त्री दोनों ने स्वयं का होना चुना नहीं है।  हमने केवल अम्मा को देखा है। बचपन से अब तक, जिस दिन अम्मा घर में नहीं होतीं ज़िंदगी उलझ जाती है। अम्मा के हाथों बने खाने के सिवा कुछ भी खाकर मन नहीं भरता है। अम्मा न हों तो हमारे कपड़े मैले रह जायें, अम्मा न हों तो हमारी कपड़े मिले भी न।  स्त्री के बिना संसार चलता है या नहीं, यह बहस ही व्यर्थ लगता है हमें। स्त्री के बिना घर नहीं चलता है, यह हम जानते हैं। अम्मा लट्टू हैं। घर की धूरी पर कभी इधर, कभी उधर नाचती रहती हैं। अम्मा लाख थकीं हो, लाख बीमार हों, एक बार कहने पर चिल्लाती जरूर हैं पर जो चाहिए वो लाकर देती हैं। अम्मा कभी नहीं बोलीं उन्हे क्या चाहिए। शायद अपनी बसायी गृहस्थी में सबकी इच्छायें पूरी करते-करते अम्मा अपनी इच्छायें भूल गयी हैं। इस दुनिया में अम्मा जैसी करोड़ों स्त्रियाँ हैं जिनके सपने उनके नहीं है। जिनकी इच्छायें दूसरों की हैं। जो स्वयं में ही शेष नहीं हैं।  हमने अम्मा को कभी स्त्री दिवस में नहीं

घाट और मैं ❣️

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 घाट और मैं  उन दिनों हम अक्सर ही घाट पर होते थे। पंडित कभी साथ नहीं था मगर श्री अक्सर होता था। कभी-कभी हम अकेले होते थे। हाथ में एक डायरी, जेब में एक पेन और बेतरतीब से ख़याल हमेशा रहते थे, जब भी अकेले हुआ करते थे।  ऐसा कई दफे हुआ था कि कुछ लोग रात में काॅल करते थे यह जानने को कि शायद हम घाट पर मिले। हम हमेशा कहते कि हम घर पर हैं। अकेले होना हमने चुना था। किसी अंधेरे हिस्से में जहाँ बस थोड़ी सी रोशनी हो, वहीं बैठ कर घंटो लिखते थे। एक जरूरी बात यह है कि घाट पर बैठकर कोई प्रेम के बारे में नहीं लिखता है। एक कुल्हड़ चाय बगल में होती थी। कुल्हड़ और चाय दोनों हर आधे घंटे पर बदल जाती थीं।  एक बच्चा था, जिसका नाम हमें याद है। वह अक्सर रात 11 के बाद काॅल करता और घंटो बातें करता। हम सुनते रहते, डायरी बंद रहती थी। वह उदास होता था, हर रोज और हर रोज हम उसे खींच कर ले आते, जिन्दगी की ओर। क्योंकि हम जिन्दा थे और हमें पता था कि जिन्दा रहना जरूरी नहीं, जिन्दगी का होने जरूरी है।  रात और गहरी होती। भीड़ आहिस्ता से छंट जाती, सन्नाटे पसर जाते थे। ऐसे वक्त में हम सीढ़ियों से नीचे गंगा की ओर देखा करते थे। कि

और हम भी ......❣️❣️

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 और हम भी... ❤ तुम्हे ये तारीख याद है? अग़र नहीं भी है तो उदास न होना तुम। हम हैं न; सब याद रखने को... सालों पहले अचानक से तुम आयी थी। प्यार-व्यार कुछ सोचा नहीं था, लेकिन एक रोज हम साथ थे। तुम्हे याद है न जब हमने कहा था; तुमसे इश्क़ है हमें। अग़र नहीं भी है तो उदास न हो तुम। सालों गुज़र गये तुम्हारे साथ और लगा था जैसे लम्हे की बात हो। इस एक तारीख में ही जब्त है वो सारा सफ़र। मालूम है तुम्हे; सालों पहले उस रोज जब बस स्टैंड पर तुम बस के भीतर थी और हम खिड़की पर। हाँ, तुम्हे कहना है कि हम वहाँ भीतर तुम्हारे साथ बैठ सकते थे लेकिन फिर तुम्हारा हाथ छोड़ते भी कैसे! उस एक दिन तुम्हारे शहर को जाती बस की उस खिड़की पर बहते तुम्हारे आंसू और हमारी भीगती हथेली के बीच जो कुछ भी था, वही हमारा प्यार था। बहुत रोये थे उस दिन हम पर तुम्हे एहसास तक न होने दिया था और फिर तुम्हारी बस आगे बढ़ गयी और हम उसे देखते रहे थे दूर, बहुत दूर... तुम्हारा शहर को जाते हुये।  अग़र तुम्हे याद नहीं भी है तो उदास न होना तुम। देखो! ये रात, कितनी गहरी होती जा रही। तुम्हारे बाद ये रातें बेहद लम्बी हो गयी हैं। वह चाँद, जिसके नीचे

मोहब्बत एवं धोखा ..... By Krishna Singh Rajput Ji

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मोहब्बत और धोखा By :- Krishna   हिम्मत नहीं रही अब मुझ में थोड़ी भी तुझसे उलझने की तू कर दे इशारा जरा  मैं भी शांत समुंदर बन जाऊंगा। तू साबित कर दे बेगुनाही अपनी खुद को गुनहगार बना मैं सबकी नजर में क़ातिल बन जाऊंगा। तू मिला ले मुझसे अपनी फरेबी नजरें एक रोज समाने बैठकर तेरी आँखों को पढ़कर मैं लोगों को पढ़ लेने का अपना हुनर भूल जाऊंगा। तू दे दे वजह मुझे बेमिसाल नफरत की चल वादा रहा मेरा  छिड़ी मोहब्बत की बातें कहीं, तो मैं उस महफ़िल की सब से बड़ी दुश्मन बन जाऊंगा। तू नजरअंदाज कर जा मेरे आसूँओं की नमी को देता हूँ तस्सली तुझे मैं आँखों को अपना सूखा रेगिस्तान बना जाऊंगा। तू बदल के देख ले अपना ठिकाना गली की बात छोड़ शहर को बदल मैं तेरे शहर का नाम तक अपने लब से मिटा जाऊंगा। तू बना ले अपनों को ग़ैर जितना ग़ैरों को अपना बना मैं तुझसे बेहतर सभी से रिश्ते निभा जाऊंगा। तू सोया कर हर दिन अजनबियों की बाहों में थाम किसी के हाथों को मैं उसकी कंधे पर सिर टिका ये जिंदगी बिता जाऊंगा। तू मत दिखा अपनी सच्चाई का सबूत खोल के कई परतें अभी तेरे करतूतों की मैं तुझे मुहब्बत के नाम पर धोखा लिख जाऊंगा। @krishna

फूल हरसिंगार के! ❤️❤️ By :- KRISHNA SINGH RAJPUT JI

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 रूप निश्चल प्यार के, फूल हरसिंगार के! रात भर बरसे जो मन की देह पर प्रेम की मैं चिर जयंती हो गयी श्वेतवर्णा मैं दुपट्टा ओढ़कर ख़ुशबुओं जैसी अनंती हो गयी मायने अभिसार के, फूल हरसिंगार के! जल रही है बल्ब वाली रौशनी किंतु मैं रौशन हूँ इसके रूप से पत्तियों की लोरियाँ सुन हो गयी दूर पीड़ाओं की निर्मम धूप से गीत हैं मल्हार के, फूल हरसिंगार के! भोर होते ही लगा है घास पर क्रोशिये के बुन गए रूमाल हैं सर्दियों का आगमन ये कह रहा ये मेरी प्यारी धरा की शॉल हैं वर हैं ज्यों उस पार के, फूल हरसिंगार के! ~कृष्णकांत🌿 @krishnasinghrajputji #sksmedics

Tum kr paaogi kya ? By krishna singh rajput ji

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जब कभी हम  हम ना रहें  तो यूँ ही मुझे बहालाओगी क्या, जब सब करेंगे चाँद की बातें  तो  बस तभी तुम सूरज मुझे दिखलाओगी क्या, हर तरफ होगा अँधेरा घना  तो  तभी तुम जरा आकर एक उम्मीद की किरण बन जगाओगी क्या, सब जा रहे होंगे जिंदगी से मेरी  तो  तुम आकर मुझ प्यार से गले लगाओगी क्या, मैं रोऊँ जो कभी जी भरकर कहीं पे  तो  मुझे मेरे आँसुओं की कीमत बताओगी क्या, कभी बातें जो छिड़ेंगी मेरे क़त्ल की  तो  उस वक़्त तुम बन मासीहा मुझे बचाने आओगी क्या, तपेगी जेठ की दुपहरी जब सारे शहर को जलाने तो  उस तपिश में तुम मुझ से मिलने नंगे पाँव दौड़ें आओगी क्या, बरसेगा जब सावन धरती की प्यास बुझाने  तो  थोड़ा सा तुम आकर मेरी आस बन मुझे हंसाओगी क्या, जब हल्की सी देगी दस्तक मौसम की मिज़ाजी वो गुलाबी सी ठंडक  तो  मुझे तुम आकर बस अलिंगबद्ध कर जाओगी क्या, जब गिरेगी वो शीतलहर में कोहरे की चादर  तो  तुम बनकर गर्माहट पूरे मुझ में सिमट जाओगी क्या, कभी ना जो रहें दुनियां में हम  तो  मेरे शब्दों को अपने अल्फाजों से मिला  मुझे पूरी दुनियां से मिलवाओगी क्या, सच कहना  इन ख़्वाबों को मेरे एक रोज आकर मुझे  मुझसे चुराकर  हकीकत में बदल जाओगी क