स्त्री होना क्या होता है ??...❣️🇮🇳
हम नहीं जानते हैं स्त्री होना क्या होता है..!!:-
हम नहीं जानते हैं स्त्री होना क्या होता है! शायद जानना जरूरी भी नहीं है। पुरूष हों या स्त्री दोनों ने स्वयं का होना चुना नहीं है।
हमने केवल अम्मा को देखा है। बचपन से अब तक, जिस दिन अम्मा घर में नहीं होतीं ज़िंदगी उलझ जाती है। अम्मा के हाथों बने खाने के सिवा कुछ भी खाकर मन नहीं भरता है। अम्मा न हों तो हमारे कपड़े मैले रह जायें, अम्मा न हों तो हमारी कपड़े मिले भी न।
स्त्री के बिना संसार चलता है या नहीं, यह बहस ही व्यर्थ लगता है हमें। स्त्री के बिना घर नहीं चलता है, यह हम जानते हैं।
अम्मा लट्टू हैं। घर की धूरी पर कभी इधर, कभी उधर नाचती रहती हैं। अम्मा लाख थकीं हो, लाख बीमार हों, एक बार कहने पर चिल्लाती जरूर हैं पर जो चाहिए वो लाकर देती हैं।
अम्मा कभी नहीं बोलीं उन्हे क्या चाहिए। शायद अपनी बसायी गृहस्थी में सबकी इच्छायें पूरी करते-करते अम्मा अपनी इच्छायें भूल गयी हैं। इस दुनिया में अम्मा जैसी करोड़ों स्त्रियाँ हैं जिनके सपने उनके नहीं है। जिनकी इच्छायें दूसरों की हैं। जो स्वयं में ही शेष नहीं हैं।
हमने अम्मा को कभी स्त्री दिवस में नहीं बांधा। हमने अम्मा को कभी नहीं कहा कि हमें उनसे कितना प्रेम है। अम्मा किसी दिन या किसी शब्द में नहीं समाती हैं। बस कभी-कभी चुपके से अम्मा को अपने बाहों में लेकर झूलते रहते हैं। शायद इससे ज्यादा प्रेम हम नहीं जता सकते। इसपर भी अम्मा मुस्कुराती हैं और पूछती हैं, 'बताव, का चाही?' अजीब है न!
अम्मा अभी-अभी मुझसे वीडियो कॉल पर बात कर के गई हैं । ये लिखते हुए हमारी गीली हो आयी आँखों को देख बोलीं, "चश्मा लगाय के मोबाइल देखल कर... पूरा आंस भर आयल हव।"
हम हँस पड़े थे, अम्मा मुस्कुरा उठी थीं। अम्मा वह स्त्री हैं जिन्होने हमें सीखाया है कि स्त्री, कमजोर नहीं होती है, पुरूषों से कहीं मजबूत होती है। खैर, अम्मा कहती हैं, 'बियहवा कब करबे तू?' हम हँस कर कह देते हैं, 'कमाय वाली मिले तब न। हम त घर सम्भालेब।' अम्मा हँस पड़ती हैं। ज़िंदगी चलती जा रही है।
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