Tum kr paaogi kya ? By krishna singh rajput ji
जब कभी हम हम ना रहें तो यूँ ही मुझे बहालाओगी क्या, जब सब करेंगे चाँद की बातें तो बस तभी तुम सूरज मुझे दिखलाओगी क्या, हर तरफ होगा अँधेरा घना तो तभी तुम जरा आकर एक उम्मीद की किरण बन जगाओगी क्या, सब जा रहे होंगे जिंदगी से मेरी तो तुम आकर मुझ प्यार से गले लगाओगी क्या, मैं रोऊँ जो कभी जी भरकर कहीं पे तो मुझे मेरे आँसुओं की कीमत बताओगी क्या, कभी बातें जो छिड़ेंगी मेरे क़त्ल की तो उस वक़्त तुम बन मासीहा मुझे बचाने आओगी क्या, तपेगी जेठ की दुपहरी जब सारे शहर को जलाने तो उस तपिश में तुम मुझ से मिलने नंगे पाँव दौड़ें आओगी क्या, बरसेगा जब सावन धरती की प्यास बुझाने तो थोड़ा सा तुम आकर मेरी आस बन मुझे हंसाओगी क्या, जब हल्की सी देगी दस्तक मौसम की मिज़ाजी वो गुलाबी सी ठंडक तो मुझे तुम आकर बस अलिंगबद्ध कर जाओगी क्या, जब गिरेगी वो शीतलहर में कोहरे की चादर तो तुम बनकर गर्माहट पूरे मुझ में सिमट जाओगी क्या, कभी ना जो रहें दुनियां में हम तो मेरे शब्दों को अपने अल्फाजों से मिला मुझे पूरी दुनियां से मिलवाओगी क्या, सच कहना इन ख़्वाबों को मेरे एक रोज आकर मुझे मुझसे चुराकर हकीकत में बदल जाओगी क