ख्वाब .. By :- Krishna ( KRISHNAKANT)
My poetric lines
ख्वाब बुनने की उमर में ,उलझनो का जाल गहराता गया..उड़ान की तैयारी पूरी थी ,उम्मीद की बेड़ीयों के ताले खुद मे समाता गया..कही सुनी बातों के दबाव में ,अपनी कमिया नजर आने लगी..उन्ही बातों को लेकर ,खुद को दोषी ठहराता गया..बस एक मौके की तलाश थी,डूबा हुआ और कितना डूबता..डर को समेट कर,अपनी ताकत बनाता गया..फ़िर ऐसा उड़ा आसमान चीरकर,गिरने की अब जो थी नहीं कोई फ़िकर..झटक के अपने कैद पंखों को,एक नई दास्तान लहराता गया..By - कृष्णकान्त सिंहआर्युविज्ञान छात्र
@krishna singh rajput ji
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