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होली के रंग
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...... होली का रंग लाज़िम है कल तक उतर जायेगा पर चढ़े रहेंगे कुछ एहसास, जो शायद ही उतरें नोचती उंगलियों के एहसास हवस भरी उंगलियों की बेहूदी प्यास वो रंग जो जिश्म छूने के लिए लगे थे, वो हाथ जो सिर्फ़ मशल देने के लिए बढ़े थे l वो निशा जो रंग छूटने के बाद भी लगा रह जायेगा वो बत्तमीज़ नज़र जो उँगलियों में उतर कर बदन पकड़ने को मचल गयी थी किसी के गठीले सौंदर्ययुक्त शरीर रचना को भीगे कपड़े में उर्यानी झांकने का नज़रिया ये कुछ ऐसे फ़िज़ूली एहसास हैं जो रंग उतरने के बाद भी न उतरेगा जिनके साथ कई रंग लगे जरूर होते हैं पर उन
Happy Diwali 2K19
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एक दिया अपने अंदर का अंधकार मिटाने को, एक दिया आपस में सौहार्द्र बढ़ाने को, एक दिया उम्मीद और विश्वास बढ़ाने को, एक दिया दुनिया को बेहतर बनाने को। एक दिया मेहनत कर अन्न उगाते किसान को, एक दिया देश को उन्नत करते विज्ञान को, एक दिया ईमानदारी से होते हर काम को, एक दिया अर्थव्यवस्था के नए मुकाम को। एक दिया पर्यावरण के सुधार को, एक दिया नदियों के जीर्णोद्धार को, एक दिया रोकने वन्य जीवों के शिकार को, एक दिया वसुधा के सहृदय आभार को। एक दिया किसी अपने की मुस्कान को, एक दिया दिल में हरपल धड़कती जान को, एक दिया नारी के सम्मान को, एक दिया सरहद पर डँटे हर सैनिक के अभिमान को। आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अर्धनिर्मित
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यहां कोई मित्र नहीं है. कोई आश्वस्त चरित्र नहीं है सब अर्धनिर्मित हैं अर्धनिर्मित इमारतें हैं, अर्धनिर्मित बच्चों की शरारतें हैं अर्धनिर्मित ज़िंदगी की शर्ते हैं अर्धनिर्मित जीवन पाने के लिए लोग रोज़ यहां मरते हैं हम रोज़ एक अर्धनिर्मित शय्या पर एक अर्धनिर्मित सा सपना देखते हैं उस सपने में हम अपनी अर्धनिर्मित आकांक्षाओं को आसमानों में फेंकते हैं आसमान को भी इन आकांक्षाओं को समेटकर अर्धनिर्मित होने का एहसास होता होगा क्योंकि यह आकांक्षाएं हमारी नहीं आसमान की हैं बिलकुल वैसे ही जैसे यह अर्धनिर्मित गाथा तुम्हारी है और कृष्णा की है.. Krishna singh rajput ji
दहेज़
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🌻🌻🌻🌻🌻दहेज🌻🌻🌻🌻🌻 एक कवि नदी के किनारे खड़ा था ! तभी वहाँ से एक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था। तो तभी कवि ने उस शव से पूछा ---- कौन हो तुम ओ सुकुमारी,बह रही नदियां के जल में ? कोई तो होगा तेरा अपना,मानव निर्मित इस भू-तल मे ! किस घर की तुम बेटी हो,किस क्यारी की कली हो तुम किसने तुमको छला है बोलो, क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ? किसके नाम की मेंहदी बोलो, हांथो पर रची है तेरे ? बोलो किसके नाम की बिंदिया, मांथे पर लगी है तेरे ? लगती हो तुम राजकुमारी, या देव लोक से आई हो ? उपमा रहित ये रूप तुम्हारा, ये रूप कहाँ से लायी हो? ""दूसरा दृश्य----"" कवि की बाते सुनकर,, लड़की की आत्मा बोलती है.. कवी राज मुझ को क्षमा करो, गरीब पिता की बेटी हुँ ! इसलिये मृत मीन की भांती, जल धारा पर लेटी हुँ ! रूप रंग और सुन्दरता ही, मेरी पहचान बताते है ! कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी, सुहागन मुझे बनाते है ! पित के सुख को सुख समझा, पित के दुख में दुखी थी मैं ! जीवन के इस तन्हा पथ पर, पति के संग चली थी मैं !
करवाचौथ का इतिहास
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करवाचौथ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, 'करवा' यानी 'मिट्टी का बरतन' और 'चौथ' यानि 'चतुर्थी'। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है। करवाचौथ का इतिहास बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्