Posts

Showing posts from August, 2020

तुम्हारे पैरों के निशान

Image
  पिछले सालों की तरह आने वाले साल भी गुजर जायेंगे। तुम्हारा लौटना नहीं होगा। बुरा होता है, सच को जानते हुये भी झूठ पर यकीन करना। बना लेना अपनी एक ऐसी दुनिया जिसमें से गुजरा हुआ शख्स कभी गुजरा ही न हो। जैसे कि हमारी दुनिया में अब भी तुम हो। आज भी सुबह उठकर चाय बनाते हैं हम... दो कप। बस पता नहीं क्यों तुम्हारी चाय ठंडी हो जाती है, तुम पीती नहीं हो। न जाने क्यों तुमने एक बार काॅल नहीं किया, न तुम्हारा फोन लगा। हाँ; जानते हैं तुम नहीं हो। महज तुम्हारी कुछ तस्वीरें हैं अपने हिस्से में जिन्हे सम्भाल कर रखा है बेहद डर के साथ कि किसी रोज ये तस्वीरें ना रहीं तो! तुम्हे गये जैसे सदी हो गयी है मगर अब तक हमने तुम्हे अपने पास रोके रखा है। शर्ट लेने से पहले तुमसे पूछते हैं अब भी। अब भी सड़क पर चलते वक्त तुम्हे अपने बायें तरफ करते हैं और तुम्हारा हाथ पकड़ लेते हैं। वो हमारे सीने पर सिर रखकर आँखे मूंदे गुनगुनाते रहने की आदत तुम्हारी अब तक नहीं गयी है। पता है... कल जब तुम्हारे लिये तोहफा ले रहा था तो याद आया कि तुम्हे हमारे साथ समंदर किनारे रेत पर दूर तक चलना था तो हम यहाँ आ गये... अभी हम तुम साथ-साथ च

सामाजिक परिघटना का यथार्थ

 Writter :- स्वयं मैं   - ( सामाजिक परिघटना का याथार्थ) मरहम के नीचे घाव है, किसको यहाँ पता। आज तक समझ न पाया, किसको किससे खता।। बराबर चल रहे थे यहाँ , एक दूसरे से बात। किसे,कब कौन छोड़ दे, एक दूसरे का साथ ।।